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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?

 

(1)


लिफ्ट में औरत दाखिल होती है, तो उसे कोना दिखाकर कहा जाता है-'यहाँ खड़ी हो।' यानी उसे कोने में खड़ी होने को कहा जाता है, ताकि मर्द उनके बदन से सटकर खड़े न हों! सटकर खड़े होते ही, वे लोग खाली जगह, फाँक-दरार और धक्का-मुक्की का फायदा उठाकर, औरत का बदन छूने की कोशिश करते हैं। वे लोग सिर्फ हाथ ही नहीं छूते, ऊपर से दवाव डालने की भी कोशिश करते हैं। मर्दो के दबाव की कई-कई किस्में होती हैं। वे लोग अपनी कोहनी, बाँह-जंघे, पाँव के तलवे, छाती. पैरों के तलवे, पेट वगैरह से औरत को धकियाते रहते हैं। लिफ्टमैन भी मर्द होता है। वह मर्दो का स्वभाव-चरित्र बखूबी जानता है। जैसे साँप जानता है कि उसके फन को किसे ज़्यादा दंश देना प्रिय है।

(2)


औरत जब बस में सवार होती है, तो कण्डक्टर उसे किसी औरत की बगल में बिठाता है! अगर कोई औरत न मिले, तो उसे किसी बूढ़े मर्द के पास बिठाता है, हद से हद किसी बच्चे या कमउम्र लड़के की बगल में! कण्डक्टर खुद भी मर्द होता है। वह भी मर्दो का स्वभाव जानता है। इसीलिए वह किसी अक्षम या कमउम्र लड़के की बगल में औरत को बिठाकर चैन की साँस लेता है।

(3)


अविज्ञान इंसान को ध्वंस कर देता है, मैं जानती हूँ! लेकिन, जो लोग विज्ञान पढ़ाते हैं, वे लोग भी आजकल नई पीढ़ी को ध्वंस करने पर उतर पड़े हैं! जगन्नाथ कॉलेज के केमिस्ट्री के प्रोफेसर, नूरुल हक ने अपने विद्यार्थियों को धातुविद्या पढ़ाते हुए कहा-'शादीशुदा हिंदू औरतें माँग में सिंदूर लगाती हैं, यह सिंदूर असल में लाल लेड होता है (ट्राइप्लम्बिक रेट्राक्साइड), और मुस्लिम औरतें, विवाह के बाद सोने के गहने पहनती हैं। इसकी वजह है, औरत के बदन से एक किस्म की गंदी गैस निकलती

है। यह गैस पति का अमंगल करती है। लेड या गोल्ड इस गैस को सोख लेता है। इसलिए ये चीजें औरत को धारण करना पड़ती हैं। मूलतः पति के मंगल के लिए ही औरत को धातु धारण करना पड़ता है!' लेकिन औरत की देह से निकलने वाली बदबूदार गैस का नाम क्या है? मैंने समूचा शरीर-विज्ञान उलट-पलट डाला। मुझे ऐसी किसी गैस की जानकारी नहीं मिली, जो सिर्फ औरत की देह से निकलती है। मर्द की देह से नहीं निकलती। केमिस्ट्री के प्रोफेसर साहब ने विज्ञान के बीच-बीच में अविज्ञान पढ़ाने की भी जिम्मेदारी ली है? वरना पति के मंगल के लिए औरत को त्यागी वनना पड़ता है, यह आदिम और असभ्य सीख वे क्यों बाँट रहे हैं?

ये सब बदकार शिक्षक, वंदवूदार गैस का प्रचार करके, विद्यार्थियों को भी बदकार बनाने में जुटे हुए है। अलौकिक अमंगल की अफवाह फैलाकर, वे लोग लौकिक, मंगल को, बड़ी धूर्तता से हटा-बढ़ाकर रखते हैं और ज़रा-जरा करके, नई पीढ़ी के दिमाग में जहर घोल रहे हैं।

(4)


मोटरसायकिल की पिछली सीट पर औरतें एक तरफ पैर झुलाकर बैठती हैं। क्यों? दोनों तरफ पैर लटकाकर बैठने में कोई नुकसान होता है? बेशक होता है। बल्कि किसी भी किस्म की दुर्घटना से उन औरतों का बचाव हो सकता है। लेकिन दोनों पाँव सटाकर बैठने का यह नियम आया कहाँ से? यह भी क्या हमारे ऊबड़-खाबड समाज से आया है? जिस समाज में औरतों को सिमटी-सिकुड़ी रहना पड़ता है; जहाँ औरत को अपने दोनों पाँव, दोनों बाँहें, दोनों हाथ फैलाना वर्जित है! जिस समाज में औरत जितना ज़्यादा सिमटी-सिकुड़ी रहेगी, उतनी ही उन लोगों को वाहवाही मिलेगी। शायद यही वाहवाही पाने के लोभ में, एक आधुनिक सवारी इस्तेमाल करते हुए भी, औरत को अपनी सिमटी-सिकुड़ी भंगिमा कायम रखना पड़ती है।

(5)


एक नौजवान से मेरा परिचय हुआ। परिचय के तीसरे दिन यह खबर फैल गई कि उससे मेरा विवाह भी हो चुका है। पाँचवें दिन यह अफवाह भी गर्म हो उठी कि हमारे एक बच्चा भी हो चुका है! लोगों की भावनाओं की इतनी इलास्टिसिटी...खिंचने की यह क्षमता देखकर मैं मुग्ध हूँ। बीवी और पतिता से परे, मर्द को शायद किसी भी औरत को काफी करीब से देखने का मौका नहीं मिलता। इसलिए किसी औरत को देखते ही, उसकी जुलजुल करती निगाहें, उन पर से हटाए नहीं हटतीं। वे लोग बाँध-तोड़ लोभ से औरतों पर कहानी-किस्से गढ़ते हैं और ये कहानी-किस्से चाय की मेज़ पर, उनके हँसी-ठहाकों का सामान बनते हैं। औरत के बारे में जितना रंग-रस मर्द करते हैं, औरतें क्या उसके हजार हिस्से का एक हिस्सा करती हैं?

(6)


आजकल बाजारों में पाकिस्तानी बुर्के का काफी रिवाज़ चल पड़ा है। औरतों का सारा तन-बदन ढंकने का इंतजाम किया जा रहा है। इधर सिनेमा हाल के विल-बोर्ड पर औरतों का जो अंग-प्रत्यंग आँका जाता है; उनके ऐसे नुकीले वक्ष आँके जाते हैं, ताकि राहगीर उन सिनेमाघरों की तरफ खिंचे चले आएँ, वह सब देखकर उनके खिलाफ ये धर्मप्राण लोग डटकर आवाज क्यों नहीं उठाते? कम से कम वे लोग जो औरतों की अश्लीलता की रक्षा के लिए अपनी जान दिए दे रहे हैं। इस बारे में विलबोर्ड की तरफ जनाब शैखुल हादिस अभी तक लांग-मार्च क्यों नहीं कर रहे हैं?

(7)


रिक्शे का हुड् गिराकर एक मर्द चल सकता है, एक औरत नहीं। कहा जाता है, कोई अकेली औरत रिक्शे का हुइ गिराकर चलती है, तो वह दृश्य शोभन नहीं लगता। यह भी औरत पर एक और किस्म के पर्दे का रिवाज़ है। ढाका शहर में अचानक-अचानक कुछेक औरतें कभी-कभी पर्दे का बहिष्कार करती नज़र आ जाती हैं। गाँव-कस्बे में यह संभव नहीं है। औरत है, तो बदन पर पर्दा चढ़ाना ज़रूरी है; क्लीवलिंग गाड़ी-सवारी भी पर्दे के बाहर नहीं है; गाड़ियों के पर्दे उन्हें सिर पर डालने ही होते हैं! बसों में भी औरतों के बैठने के लिए अलग-थलग जगह होती है। सिर्फ गाड़ी सवारी में ही नहीं, रेस्तराँ तक में पर्दे से घिरे केबिन होते हैं-केविन के दरवाजे पर लिखा होता है-महिला!! यानी औरत को ढाँक-तोपकर रखने का रिवाज़ हर कहीं है। खाने की चीजें जैसे ढंककर रखना पड़ती हैं, उसी तरह औरत के बदन पर भी कोई धूल पड़ने या मक्खी बैठने देना नहीं चाहता। हाँ, कोई भी औरत को बासी होने देना नहीं चाहता; उसे ढंककर रखता है। फ्रिज में रखता है। चूल्हे पर चढ़ाता है उसके बाद परोसता है।

प्रेम, प्रेम होता है! इसके आगे या पीछे 'परकीया' या 'स्वकीया' शब्द का इस्तेमाल करने से, प्रेम की महिमा ही नष्ट होती है। मैजिस्ट्रेट शाहिदा परकीया प्रेम करती थी और उसकी संतान, उसके पति की नहीं है, इस बारे में इन दिनों प्रेस खासा मुखर है। खैर, प्यार, महब्बत वह कर ही सकती है! पति का 'सिमेन' अगर 'स्पर्मलेस' हो या वह उत्थानरहित हो, तो औरत अपने प्रेमी की संतान अपनी कोख में ले ही सकती है। कोई इंसान अपने तन-मन में किसको वहन करेगी या नहीं करेगी, यह उसका नितांत निजी मामला है! शाहिदा के प्रेम-प्रसंग से छेड़छाड़ करने का मतलब है, उसकी व्यक्तिगत स्वाधीनता से छेड़छाड़ करना! वैसे जहाँ जिंदा औरतों को ही कोई आज़ादी नहीं है, वहाँ मुर्दा औरतों की आज़ादी कौन-सी बड़ी चीज़ है!


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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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